वृकासुरै कथा त सब्युं न ही सूणी ह्वोळी! जू सिब्जी तै खुस कन्ना बाना छै दिन तक, एक एक करी अप्ड़ा सरीळा अळग-अळग हिस्सा हवन कुंडै आग मा चड़ाणु रै, पर सिब्जी न वेतै दरसन नी देनी। त सांतां दिन वु अप्ड़ु मुंड काटी तै चड़ाण ळग्गी। तब सिब्जी परगट व्हेनी, अर वेतै बरदान मंग्णु तै ब्वोळी। वेन मांगी कि मी जैका बी मुंडम हाथ धारूं, वु भसम व्हे जावु। बरदान मिन्ना बाद पारबती जी दग्ड़ी ब्यो कन्ना बाना, वु सिब्जी तै ही भसम कन्नू वुंका पैथार भागी। अर सिब्जी भागी तै एक गुफा मा ळुक गैनी। बाद मा बिष्णु जी न मोहनी रुप धारी, वृकासुर तै नचै, अर नच्दू-नच्दू अप्ड़ा मुंड मा हाथ धारी। त वृकासुर न बी अप्ड़ा मुंड मा हाथ धारी, अर वु भसम व्हेगी। वेतै सब्बी भस्मासुरा नौ से बी जणदन। या कथा इख्मी खतम नी ह्वोंदी। ब्वोळदन कि सिब्जी वेका बाद वीं गुफा मा ही समाधी मा बैठ गैनी। पारबती माँ न वुंका बियोग मा इद्गा आंसू बगैनी, कि वुखम एक एक छ्वोटु सी ताळ बण गी। बाद मा गणेस जी अर कार्तिकेय जी दग्ड़ी, सब्बी देप्तों न वुंतै मनाणु तै पूजा करी। वेका बाद सिब्जी एक बड़ा डांग तै फोड़ी (खंडित करी) भैर ऐनी। वु सत्तर फुटौ, फुट्युं डांग (खंडित शिळा) ही आज श्रीखण्ड माद्द्यो का नौ से पुजे जांदू। अर वेका नजीका ताळ तै ळोग, नैन सरोवर ब्वोळी पुज्दन।
दिळ्ळी, हरयाणा अर पंजाबै उमळ्दी ज्वानि तै इन कथौं से जादा मतळब नी च। वु त सिब्जी का व्ही भगत छन जौंका बारा मा जादा बथाणै जरुवत नी च। भस सिब्जी का ब्यो मा गंयां बरातियुं तै याद कर ळ्या। ईं जात्रौ तै हिमाचळ सरकार जुळै का मैना न्युतदी। १५ जुळै बटी ३१ जुळै तक। अब तुमन बी बरातियु मजा ळेण त वे टैम मा ही जा। अब बराति मा गयां छां, त खाण पेणै चिन्ता नी कन्न। किळै की जगा-जगा मा भंडारा ळंग्या राळा, अर सैरा इलाका मा बराति सी चैळ-पैळ। तुमन बी वुं दग्ड़ी भस, भोड़े साइड, भोड़े साइड!!! ळग्युं राण। मिन एक हिमाचळी नौना तै पूछी कि, जात्रा का टैम त हर टैम बर्खा रांदी ह्वोळी। त वेन ब्वोळी कि जात्रा का टैम त जन बी राँदी, पर जात्रा खतम ह्वोंदी ३-४ दिन तक खूब बर्खा ह्वोंदी। ज्वा यूँ १५ दिनूं मा, इख भंडारों, अर आण-जाण व्ळों की करीं, सैरी गंद तै बगै कि ळ्ही जांदी। मेरी जाण तुम सम्जी गै ह्वोळा कि तुम तै कबारि जाण चयेणु च इखै जात्रा मा। हम तै अप्ड़ा हेसाब न, १० बटी १५ अगस्त मा जाणु ठीक ळगी। ये टैम मा इख जाणु इन्नी ळग्दू, जन बराति वापस जाणा बाद नौनी व्ळों कु घौर। हिमाळय की क्वी बी जात्रा हो, वा मैतै त इन्नी शान्ति मा ठीक ळग्दी।
ईं जात्रा का बारा मा पौढा, त सब्बी जगा य्वी मिळ्दु कि श्रीखण्ड माद्द्यो, सड़की बटी पैंतीस किळोमीटर दूर च। अर यी आण-जाणा सत्तर किळोमीटर चार दिन मा पुराये जांदन। पैळा दिन ळोग सुबेर दस-ग्यारा बजी तक जांव गौं मा पौंचदन, फेर दस किळोमीटर चळी ब्याखुनी दां तक थाचड़ु। दुसरा दिन सत्रा-अठारा किळोमीटर चळी, भीम द्वारी या पार्बती बाग। तेस्रा दिन सात-आठ किळोमीटर चळी, श्रीखण्ड माद्द्यो अर फेर ब्याखुनी दां तक, उद्गा ही चळी वापस भीम द्वारी या पार्बती बाग, अर चौथा दिन ळगभग सतैस-अठैस किळोमीटर चळी जांव। पौढी तै ळग्दू, कि क्या इद्गा चळे सकेंदू चार दिन मा? वु बी हिमाळय मा पांच हज्जार मीटरै ऊँचै तक व्हेकी आण। पर जादा स्वोचण से ठीक ळगी, कि जब सब्बी इन्नी जाणान, त हम बी चळी जौळा।
रात भर बसै जात्रा करी सुबेर नौ बजी तक रामपुर से पैळी, जांव जाण व्ळा रस्ता मा पौंच गयां। पर ऐत्वारौ दिन छौ, अर यु कैन बतै नी छौ, कि छुट्टिया दिन ळोकळ बस भौत कम चळ्दिन। तीन घंटा वुख्मी बैठ्यां-बैठ्यां कटे गैनी। वु त भळु हो वुं बिचारा नौनौ कु, जौन अप्ड़ी आळ्टो मा बैठै की हम्तै बागीपुळ तक छौड़ी, अर वुख बटी जांव तकै एक टैक्सी बी करै दे। सवा द्वी बजी तक जांव बटी ऐथारौ ळग ग्यां। तीन किळोमीटर बाद सिंगाड़ ऐ, जखम जात्रा का टैम मा, नौ ळिखै की ही ऐथार जाण देंदन। फेर द्वी किळोमीटर बाद बराटी नाळा। इखम एक बाबौ आश्रम च, जु अज्क्याळ आण व्ळों तै राण-खाणू तै दे देंदन। एक रजिस्टर धर्युं च, जैमा नौ-पता ळेखी तै ही ऐथार जाण देंदन। इखम तकौ बाठु ळदां-ळदां च, त सड़े तीन बजी तक पौंच गै छा। गाड पार करद्यु एक दुकानि दिखे, सबेर बटी भुक्की छा, त अळ्ळू का परांठा खये गैनी। ये सैरा बाठा मा बीच-बीचम गौं का ळोग एक-डेड़ मैना तक छप्पर सी बणै की, खाण-सेणौ जुगाड़ बंणादन।सुरु-सुरु व्ळा खाण सेणा ढै सौ रुप्या ळेंदन, जू पारबती बाग तक जांदू-जांदू चार सौ व्हे जांदन।
जख बी ईं जात्रा का बारा मा पढ्ळ्या या सुणळ्या, त थाचड़ु की उकाळि का किस्सा जरुर सुणेळा। कद्गै त थाचड़ु तक जाणा बाद ही वापस ऐ जांदन। हम्तै चार त इख्मी बज गै छै, त पैळ्यी सोच येळी छौ, कि जखम बी पैळु ठिकाणु मिळ्ळु, उख्मी रुक जाण। या उकाळि इन च कि धौण नी उठायेंदी, अर ज्युकड़ी फटणु तै तैय्यार रांदी वा अळग। द्वी घंटा मा द्वी किळोमीटर ही चळ सकी छा। वु त भळु हो वुँ बूड-बुड्ड़ियु, जौन हम जनौ कु तै राण-खाणौ तै छप्पर बणांयु छौ। वुंतै द्येखी या जात्रा दुस्रा रूप मा बी द्येखे। जैमा एक तरफां त युं ळोगुं तै कुछ अळग से कमाण-धमाणौ मौका मिळ्दू, त दुसरी तरफां हम जनौ तै सस्ता मा जात्रा पुराणौ सारु। दुवी जणौ न साठ पुरायेळी छा। वुन त यु टैम सेबौ च, पर वेतै द्येख्णु वुंका ज्वान नौना-ब्वारि घौरम छन। हप्ता मा एक-द्वी दिन वुंकॉ नाती-नतेणा, दुकानियु तै समान ळ्हेकी ऐ जांदन।
सबेर टैम मा उठी, छै बजि बाठा ळग गयां। थाचड़ु अबि बी तीन किळोमीटर छौ, जैतै पुराण मा, सरीळौ सेरु घ्यु-तेळ निकळ गी। बराटी बटी थाचड़ू तक पाणी ना का बराबर च। इळै राण-खाणौ जुगाड़ बी, द्वी-तीन जगा मा ही च। आज सौंणा मैनौ सोम्बार छौ, इळै आजौ दिन चा-पाणी मा हि कटेण छौ। थाचड़ु मा चा पेंदु-पेंदु एक मदरसी दगड़ी खूब छुवीं बत्त व्हेनी, जु जात्रा की वाप्सी मा छौ। पैंसठ साळा वे मन्खी न, उत्तराखंड हम से जादा पैदळ घुम्युं छौ। ये हिंवाळै कांठियुं मा क्वी त इनी सक्ति च, ज्वा एक बार इख आणा बाद, बार-बार ख्यचणी रांदी।
अबी त भौत चन्न छौ, इळै टैम मा ही फेर बाठा ळग गंयां। सुणी य्वी छौ कि उकाळ थाचड़ु तक ही च, पर या इखम बटी द्वी किळोमीटर ऐथार, काळी धार तक च। थाचड़ु तक त बाठु घैणा बोणा बीच च, पर वेका बाद ऊँचै बढदी त, डाळा खतम व्हेकी, थ्वोड़ी दूर तक झाड़ी, अर वेका बाद घास, पर बाठु बण्यु च। काळी धार तक पौंच्दु-पौंच्दु थकी बुरा हाळ व्हे गै छा, इळै खूब थौ खये गी। वुन त इखम बटी, श्रीखण्ड माद्दयो का दरसन होंदन अर दग्ड़ा मा सैरी घाटी बी द्येखेंदी। पर इबारि तक त कुयेड़ी न सब ढौक येळी छौ। बर्खा बी आण व्ळी छै, त बाठा ळग्णु ही ठीक ळगी। काळी धार से पैळी, कुछ ज्वान नौना बी मिळ गै छा, जौंकु जोर जात्रा से जादा, भंग्ळू पेण मा छौ। धारम बटी भीम तळाई तक उँदारी-उँदार च, वेका बाद कुछ उकाळ अर कुछ ळदां-ळदां बाठु च कुंसा तक।
कुंसा मा बी द्वी-तीन दुकानि छै। इनै बर्खौ झौड़ु ळगी, अर उनै हम एक टैंटा पेट। थौळा एक तरफां चुळाये गी, जुत्ती खोळेनी अर सीदा कंबळौं का भितर। मेरी जाण द्वी घंटा तक ळगीं रै बरखा, अर हमुन बी खूब नींद पुरै। ज्वान दगड़्यों न मेरी जाण तबारि तक खूब भंगळू फूक येळी छौ, अर वु अबी हौर आराम कन्न चाणा छा। पर सड़े तीन बज गै छै त हम द्वी पैट गयां। इखम बटी भीम द्वारी ३-४ किळोमीटर, हळ्की ऊकाळ-ऊँदारौ, पर खराब बाठु च। इळै टैम ळग जांदू, खासकर बरखा बाद। द्वी जगा मा गदना पूरा ग्ळेसियर न ढक्यां छन, अर बरखा होंदू-होंदू टैम बी व्हेगी, त अब जादा नजबूत नी रै गैनी, इळै टुट्णै डौर ळगीं रांदी। एक जगा मा त बाठु गैब छौ, भस रौड़-रौड़ी गदना मा उतन्न छौ, त दुसरी जगा मा इन बौळु, कि जुत्तों की माळा बणै की नांगी खुट्टियुं न पार कन्न पोड़ी। गदना बटी गुड़गौं का द्वी ज्वान नौनौ कु दगड़ु मिळी, जु अफ दगड़ी थाचड़ु बटी एक गैड ळ्हेकी चन्ना छा। यांसे पैळी वून भस केदारनाथै जात्रा करीं छै। रात थाचड़ु मा जात्रा बटी वापस जाण व्ळों न वुंतै दग्ड़ी मा गैड ळ्ही जाणै सळा दे। अर अब बाठा द्येखी वूंतै बी ळग्णु छौ कि वून सळा मानी तै ठीक ही करी। भीम द्वारी पौंच्दू-पौंच्दू रुमुक पोण्ण ळग गै छै, त रात वुक्खी रुक गयां। पर गुड़गौं व्ळों न त सौं खायीं छै, कि रात नौ बजी तकी सै, पर जाण पारबती बाग ही च।
पंद्रा अगस्त आंदू-आंदू जात्री कम व्हे जांदन, त इखा जादा दुकानदार बी तौळ जाण ळग जांदन। हमारू ळाळा बी भोळ तौळ जाण व्ळु च, त वेन सळा दे कि अगर हम अप्ड़ा थौळौं तै मत्थि नी ळ्ही जौळा, त वु अप्ड़ा एक टैंट मा रख द्योळु। हम बी वीं उकाळि मा समान नी बोकण चाणा छा, त वेकी सळा सिब्जी का आदेसै तरां मने गी। सबेर पौने पाँच बजी तक हम बाठा ळग गै छा। भीमद्वारी बटी थ्वड़ा सी ऐथार जांदू ही एक बड़ु ग्ळेसियर पार कन्न प्वोड़्दु, अर वेका बाद पारबती बाग तक खड़ी उकाळ। सबेर-सबेरौ जोस छौ, त डेड घंटा से कमी ळगी छौ इख तक। पारबती बाग तक त सैरु बाठु बण्यु च, पर येका बादौ सेरु बाठु ढुंगौं का ब्यीच च। ब्यीच-ब्यीच मा ळोखुं न ळाळ-पीळा रंग न निसाण बणांयां छन। अज्कयाळ जात्री कम छन, त युं निसाणुं तै द्येख-द्येखी की ही पौंचे सकेंदू श्रीखण्ड तक।
दूर मत्थि धारम हम्तै द्वी-तीन मन्खी द्यिखेनी, त सारु ळगी कि चळा अब त ऐथारौ रस्ता मिळ ही जाळू। सड़े सात बजी से पैळी हम नैन सरोवर पौंच गै छा। पाणी भौत कम छौ ताळ मा, अर जादा तर जम्युं छौ। थ्वड़ा सी पाणी बुंद छिड़की हमुन वेतै ही डुबकी मरयां का बराबर मानी, पाणी बोतळ भोरी, अर बाठा ळग गयां। कुछ दूर तक रंग्यां निसाण द्यिखेनी, पर बाद मा पता नी चन्नु छौ, इळै डौर ळगीं छै कि कखि रिबड़ नी जां। इखम ऐकी तै ळगी कि, दग्ड़ा मा क्वी त चयेणु च जैकु यु बाठु पैळी बटी द्यिख्युं हो। थ्वोड़ा सी हौर ऐथार पौंच्यां त द्वी मन्खी तौळ आँदू द्येखेनी। इनी सेळी पोड़ि, कि चळा अब त थ्वड़ा सी रै गी। नजीक ऐनी त द्यिखे कि ब्याळि गुड़गौं वळु एक नौनु, अर ऊँकु गैड वापस बाठा ळग्यां छा। पता चळी कि गुड़गौं व्ळा नौना की तबेत खराब च, अबी त तीन-चार घंटा हौर ळगणन इखम बटी इळै अब वु इख्मी बटी वापस जाणु च। पर वेकु दग्ड़या ठीक च, त गैड वेतै नैन सरोवर तक छोड़ी वापस आळू।
नैन सरोबर बटी श्रीखण्ड माद्द्यो तक बड़ा-बड़ा डांगुं का ब्यीच व्हेकि जाण प्वोड़्दु, अर कदगै जगा बाठौ पता ही नी चळ्दु। द्वी-तीन जगा त कुळ बरफ ही बरफ मा जाण, अर दसरी तरफां इनु भेळ, कि खुट्टी रौड़ी त दग्ड़या बी ळेणु नी ऐ सकदन। चर्री तरफां कुयेड़ी ळगीं छै, पर बाबा किरपा इन छै की द्वी-ढै सौ मीटर पैळी बटी बी शिला द्यिखेणी छै। बरफा एक बड़ा सी हिस्सा तै पार करी, भीम बही मा पौंच्यी छा, कि दुसरी तरफां बटी बरफा भोरयां खड़ा डांडा बटी चार-पांच हिमाचळी नौना आंदु द्यिखेनी। वु फांचा व्ळा बाठा बटी आणा छा। मैतै पैळी बार पता चळी कि श्रीखण्ड पौंच्णौ क्वी दुसरु बाठु बी च। श्रीखण्ड पौंच्णा बाद अफी ळग जांदु कि, इनी जगौं मा भग्ती का सारा का बिना नी पौंचे सकेंदू। जात्रा ये पूरा जीवनै हो या कैं बी इनी जगा की, कबी बी आसान नी होंदी। पर हर जात्रा तै करदू-करदू कुछ इनु जरुर मिळ्दु जु वेका बाद हम्तै एक नया बाठा मा ळ्ही जांदू।
प्रमोदौ मेरी जाण अबज छौ, इळै वु शिला का दूर बैठी तै ही दरसन कन्नू रै, जु मैतै ठीक नी ळग्णु छौ। किळै कि सैरी जात्रा का दुख-सुख दग्ड़ी कटे छा, बस इखम अळग-अळग छा। पर हमारि श्रदा अप्ड़ी जगा च, त रीति रिवाज बी अप्ड़ी जगा छन, अर सब्युं कु मान बी हमुनी रखण। इळै मिन स्वोचण से द्यु-बत्ती कन्नू जादा ठीक समजी। मी धूप बळणु छौ कि जोर जोरै आवाज सुणे...
"जटाटवीगलज्जल प्रवाहपावितस्थले, गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम्। डमड्डमड्डमड्डमनिनादवड्डमर्वयं, चकार चंडतांडवं तनोतु नः शिवः शिवम…….. देख बाबा अपन तेरे ळिये तेरी पंसद कि चीज ळाया है। बनारस के घाट का भसम!!!!!"
हमारु गुड़गौं व्ळु जात्री कुछ जादा ही भावुक व्हे गै छौ। अर होण बी चयेणु च। वुख पौंची ळग्णु छौ की भस कैळास मा वेका सम्णी ही बैठ्यां छां। इनै फांचा कि तरफां बटी अयां जात्री बी परसाद बणै की द्यु-बत्ती कन्नू तै पौंच गैनी, त उनै ब्याळी आदा रस्ता मा बिछड़ीं भंग्ळ्या टोळी बी पौंच गी। डेड-द्वी घंटा तक वुखम राणा बाद वापस बाठा ळग गयां, अर तीन बजी तक पारबती बाग मा, जख सीदा भात-दाळौ औडर दिये गी। भीमद्वारी बटी श्रीखण्ड माद्द्यो तक पौंच्ण मा हम्तै छै घंटा ळग गै छा, पर वापस पारबती बाग तक पौंच्ण मा द्वी घंटा से बी कम टैम ळगी। हमुन स्वोचि छौ कि रात सेणु तै भीमद्वारी चळ जौळा, किळै कि हम द्वी अप्ड़ा स्लीपिंग बैग ळ्हेकी बी ऐ छा, जु अबि तक थौळौं बटी भैर बी नी निकळी छा। पर बरखौ इन झौड़ू ळगी, कि दुसरा दिन सुबेर नौ बजी भी छतरा खोळी तै ही पारबती बाग बटी ऐथार बाठा ळग सक्यां। आज पैटण मा देर व्हे गै छै, त रुमुक पोण्ण तक बराटी नाळा तक ही पौंच पयां। थक इन ळग गै छै कि बाबा का आश्रम मा ही रुक्णु ठीक ळगी।
एक त जादा तर बरखा ळगीं रै, अर दुसरा जात्रा तै चार दिन मा पुराणा चक्कर मा, छपछपी सी नी प्वोड़ी। त हर बारै तरौं या जात्रा बी दुबारा कन्नै स्वोचे गी, अर दुबारा ईं जात्रौ तै पांच-छै दिनौ टैम रखळू। मैतै या जात्रा एक तरफां जादा से जादा छब्बीस- सत्तैस किळोमीटर ळगी। इळै पैळा दिन त वुख्मी रुक्ळू जखम इबारि रुकी छा, जांव बटी लगभग सात किळोमीटर दूर। दुसरा दिन ळगभग आठ-नौ किळोमीटर चळी कुंसा तक, जू एक सुंदर बुग्याळ च। तेस्रा दिन पांच-छै किळोमीटर चळी पारबती बाग तक। चौथा दिन पांच किळोमीटर चळी श्रीखण्ड माद्द्यो अर वापस सात किळोमीटर चळी भीम द्वारी तक, अर पांचा दिन बीस-एक किळोमीटर चळी जांव तक। अब द्येखा कब होंदी या जात्रा दुबारा।
सिंगाड़ अर वेका नजीकौ बाठु
इना ठिय्या बण्यां रांदन सेण-खाणु तै
यी मदरासी भैजी, पिछळा पैंताळिस साळ बटी उत्तराखण्डै डांडियुं मा पैदळ घुम्णा छन
काळी घार
भीमद्वारी
नैन सरोवरौ बाठु
नैन सरोवर
नैन सरोवर बटी ऐथारौ बाठु
श्रीखण्ड माद्द्यो
यु च हमारु गुड़्गौं व्ळु जात्री, वुन वु राण व्ळु इळाबादौ च, अर गुड़गौं मा नौकरी करदू
नैन सरोवर
पारबती बाग बटी
पारबती बाग अर भीमद्वारी का ब्यीचौ ग्ळेसियर
कुंसा
थाचड़ु
ठ्यीक च अंकळ जी फेर मिळ्ळा
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