८ सितम्बर २०१७, सबेर ढ़ै बज्यु इलारम लगायुं छौ मेरु। किलै कि ज्युनय्लि रात छै, अर नीलकंठ तै ज्युना उज्येला म ख्यच्णु त मि सैर्री रात बि बिज्युं रै सक्दूं। अर इख त फोटु ख्यच्णु तै जड्डा म भैर बि नि जाण। बालकोन्यु दरोजु खोन्न, अर खुर्सी म बैठ्यां-बैठ्यां फोटु ख्यैंचा। पर निन्द आज इलारम बजण से बि पैळी खुल गी, येकु तै इ बोल्दन सरीलौ इलारम। ४०-४५ मिन्ट तक फोटु ख्यचणा बाद मिन सोचि, कि घाम आण म त अबि भौत टैम च, किलै न मि नहेकि ऐ जौं। सितम्बरौ मैना, अर बदिरनाथै ठंड !! कैकु ज्यु नि बोल्लु गरम पाणि न नहेणौ। आज भौत दिनूं का बाद नहेण छौ गरम पाणि न, इलै सबेर सड़े तीन बजी, छ्व्टा बैग म कपड़ा डाळी अर खुस व्हेकि, फ़ल्लि मरदु-मरदु, पौंच ग्यौं तप्त कुंड म।
मेरा द्वी पुराणा नंहेदरा अबि बि उन्नी नहेणा छा जन कि कुछ नि देखि हो वून। पर भितरि-भितर त बोन्ना रै होळा, ज बेट्टा हौर जा, ज ज जा नह्यो। अर मि स्वच्णु छौ कि नह्यों कन मा। अब लोट्या त छैं नी छौ मैमा कि मि बि भैर इ भैर नहे जांदू, इलै मिन बि दुस्री तरफां अपड़ा खुट्टा पाणि म डळनि, अर हत्थू न मत्थि सरील म पाणि डळण बैठ ग्यों। थ्वड़ा देरौ तै पाणि म खुट्टि डळ्दू, फेर एक मिन्ट से पैलि भैर, अर दुबारा फेर से ऊई नाटक। थ्वड़ा देरम एक बाबाजी ऐनी, रै होला नब्बे का हेर फेरम। अर औंद्वी सीदा कुंडम, वु बि सीदा सोता मुखम जैकि आराम से नहेण लग गैनि। मि वुं बाबाजी तै बस देख्ण्यु इ रयुं। इबारि तक म्यरा गौणा बि ये गरम पाणि का हभ्यस्त व्हे गै छा, त मि बि कुंडम पूरू हि चल ग्यौं। पाणि अबि बि भौत तातू लगणु छौ, पर मि आंखा बंद करि बद्रीबिसाळौ ध्यान क्न्न लग ग्यौं अर फेर त पता नि कद्गा डुबिकि मन्नी।
कुल्ल द्वी मनखी छा नहेणा उबारि, वु बि कुंडा द्वी कूणौ मा बैठी। एकै खुट्टी भैरै तरफां छै, अर लोट्या न छौ वु नहेणु, त दुसरा गौणा-गौणा तक पाणि म छा, अर हत्त न पाणी धोळ्णु छौ उ। मिन बि आँखि्युं इ आँखि्युं न उं तै धुत्कारि, कि हठ इन नंहेदन क्वी, अर सीदा गयुँ कुंडा भितर। पर जद्गा जल्दि मिन भितर जाणै दिखै छै वे से जादा जल़्दि मि भैर भग्यूं। किलै कि इन लगि कि जादा देर पाणि म रौळु त फुफरा पोड़ जाला। फेर स्वोचि, पैलि बि कद्गै दां नहेयुं छौं मि इख, पर इद्गा तातू त कबि नि छौ कुंडौ पाणि ।
मेरा द्वी पुराणा नंहेदरा अबि बि उन्नी नहेणा छा जन कि कुछ नि देखि हो वून। पर भितरि-भितर त बोन्ना रै होळा, ज बेट्टा हौर जा, ज ज जा नह्यो। अर मि स्वच्णु छौ कि नह्यों कन मा। अब लोट्या त छैं नी छौ मैमा कि मि बि भैर इ भैर नहे जांदू, इलै मिन बि दुस्री तरफां अपड़ा खुट्टा पाणि म डळनि, अर हत्थू न मत्थि सरील म पाणि डळण बैठ ग्यों। थ्वड़ा देरौ तै पाणि म खुट्टि डळ्दू, फेर एक मिन्ट से पैलि भैर, अर दुबारा फेर से ऊई नाटक। थ्वड़ा देरम एक बाबाजी ऐनी, रै होला नब्बे का हेर फेरम। अर औंद्वी सीदा कुंडम, वु बि सीदा सोता मुखम जैकि आराम से नहेण लग गैनि। मि वुं बाबाजी तै बस देख्ण्यु इ रयुं। इबारि तक म्यरा गौणा बि ये गरम पाणि का हभ्यस्त व्हे गै छा, त मि बि कुंडम पूरू हि चल ग्यौं। पाणि अबि बि भौत तातू लगणु छौ, पर मि आंखा बंद करि बद्रीबिसाळौ ध्यान क्न्न लग ग्यौं अर फेर त पता नि कद्गा डुबिकि मन्नी।
आज सबेरै ईं डुबिकि म मैतै यु समज म ऐगै छौ कि, जन आज या तप्त कुंडै डुबिकि छै उन्ही छन वे परमेस्वरै सीर सागरै डुबिकि बि। साधना का सुरु म बि उन्हि करंट लग्दु, जन वे पाणि म खुट्टु धरद्यु लगि छौ। किलै कि सध्यूं त छै नि च अर चाणा रंदाँ कि सीदा चरम मा पौन्छ जां। ये सरील तै विं परम सक्ति तै सैणै तागत इ नि रान्दि। पर उबारि डन्न से जादा जरुरि होन्दु धैर्य अर वीं परम शक्ति मा बिस्बास। अर दगड़म चयेंदु, सदगुरु कु आसिर्बाद अर साथ । ये सब कुछ होणा का बाद हि वे सीर सागर म डुबिकि लग पान्दि।
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