दादी न छव्टा बटी देवी देप्तों की खूब काहनी सुणैनी, अर वूं सब काहनियूं की सब्बि जगा इक्खी ये गढ़वाळ मा छै । तबारी बटी यु समझ मा ऐ गै छौ कि हमारा देप्तों की माया इख से जुड़ीं च । केदारखंड मा हमारा ये गढ़वाळ तै शिव जी की सबसे प्रिय क्रीड़ाभूमि बि बतयूं च,
“सुमेरोश्चैव माहत्म्यं कथयामास शक्तिृधृक । सर्वेषां क्षेत्रवर्याणां पृथिव्यां ये मुनीश्व्रराः ॥
केदारमंडलं यावत्तावदंतः पुरै मतम । श्री शिवस्य महाभाग क्रीडास्थानामिदं परम ॥
केदारखंड मा हमारा गढवाळा सब्बि तीर्थस्थानूँ कु, अर उख से जुड़ीं कथावूं की पूरी जानकारी दिईं च । यूँ सब काहनियूं तै पढ़ी अर सूणी तै पता चल्दू की आखिर हिन्दू धर्म मा आस्था रखण वळा मनखी, किले गढवाळो तै देवभूमि बोळदन।
गढवाळा नौ से जणे जाण वाली हमारि ईं देवभूमि मा, सैरी दुनिया का मनखी सैरा साल भर आणा लग्यां रांदन । यूँ सब्युं का ईख आणा अपणा - अपणा बाना छन । क्वी छुट्टियुं मा हिल स्टेशन घुमणा बाना मा, त क्वी साहसिक खेलों का बाना । पर येमा सबसे ज्यादा छन वू लोग जू ईं देवभूमि मा देवस्थानूँ की यात्रा कन्नू तै आंदन । विदेशी लोगु़ं का बि इख आणा अपणा अलग ही बाना छन, वू इख हिमालय का बस मा व्हे की आंदन, अर हमारि संस्कृति मा ही रमे जंदन । अर हमारु त जलम भी इक्खी व्हे अर ज्वान भी इक्खी हुयाँ, त कदगा दिन जी रै सक्दां इख बटी दूर।
पढ़ण मा त मेरु ज्यु वुन भी नी लगदू छौ, अर ऐन्च बटी लणगणै आदत भी पोड़ गी । फेर जन-जन उमर बढ़णी रै त मेरि लणगणै आदत भी बढण लग गी, बस फरक इदगा च कि अब इ धार्मिक यात्रा जादा व्हे गैनी । एक बार गुरजी दगड़ी देवस्थानुं की छुँवि बत्त लगणी रैनी त गुरजी का इ शब्द जिकुड़ी म बैठ गैनी, कि यू सैरु भारतवर्ष ही देवस्थान च अर यू सैरू हिमालय सन्तूं की यूनिवर्सिटी । बस फेर क्या छौ, अब त लणगुणू तै सैरू हिमालय, अर भारत मिल गी, बस मौका चयेणु च।
जबारि बटी ईं नौकरी का बाना घौर छोड़ी तै देस भग्यां, त गढ़वळी बोलण वळौं कू दगड़ू बि छ्व्ट गी । ये ब्लॉग का माध्यम से मी अपणा गढ़वाली भै बंदूं दगड़ी, युं जगों का बारा म, इख घुम्दु घुम्दु जदगा बि मैंतै पता चली, अर जू बि मिन महसूस करी वेतै गढ़वाली मा बथाणै की कोशिश करणु छौं। ताकि जू भै बंद गढ़वाळ बटी दूर व्हे गैनी, वू दूर देशम भी ये तै पढ़दू-पढ़दू अफु तै गढ़वाळ मा ही महसूस करन, अर अगर वु यूँ यात्राओं मा जाण चाणा छन त, वूं तै जानकारी भी पैली बटी रावु । ईं उम्मीद म बि छौं कि अपणा विचार भी मैतै जरुर बताला अर हम अपणी बोली मा छुँवि बत्त लगै सकला।
जय बाबा केदार ।
“सुमेरोश्चैव माहत्म्यं कथयामास शक्तिृधृक । सर्वेषां क्षेत्रवर्याणां पृथिव्यां ये मुनीश्व्रराः ॥
केदारमंडलं यावत्तावदंतः पुरै मतम । श्री शिवस्य महाभाग क्रीडास्थानामिदं परम ॥
केदारखंड मा हमारा गढवाळा सब्बि तीर्थस्थानूँ कु, अर उख से जुड़ीं कथावूं की पूरी जानकारी दिईं च । यूँ सब काहनियूं तै पढ़ी अर सूणी तै पता चल्दू की आखिर हिन्दू धर्म मा आस्था रखण वळा मनखी, किले गढवाळो तै देवभूमि बोळदन।
गढवाळा नौ से जणे जाण वाली हमारि ईं देवभूमि मा, सैरी दुनिया का मनखी सैरा साल भर आणा लग्यां रांदन । यूँ सब्युं का ईख आणा अपणा - अपणा बाना छन । क्वी छुट्टियुं मा हिल स्टेशन घुमणा बाना मा, त क्वी साहसिक खेलों का बाना । पर येमा सबसे ज्यादा छन वू लोग जू ईं देवभूमि मा देवस्थानूँ की यात्रा कन्नू तै आंदन । विदेशी लोगु़ं का बि इख आणा अपणा अलग ही बाना छन, वू इख हिमालय का बस मा व्हे की आंदन, अर हमारि संस्कृति मा ही रमे जंदन । अर हमारु त जलम भी इक्खी व्हे अर ज्वान भी इक्खी हुयाँ, त कदगा दिन जी रै सक्दां इख बटी दूर।
पढ़ण मा त मेरु ज्यु वुन भी नी लगदू छौ, अर ऐन्च बटी लणगणै आदत भी पोड़ गी । फेर जन-जन उमर बढ़णी रै त मेरि लणगणै आदत भी बढण लग गी, बस फरक इदगा च कि अब इ धार्मिक यात्रा जादा व्हे गैनी । एक बार गुरजी दगड़ी देवस्थानुं की छुँवि बत्त लगणी रैनी त गुरजी का इ शब्द जिकुड़ी म बैठ गैनी, कि यू सैरु भारतवर्ष ही देवस्थान च अर यू सैरू हिमालय सन्तूं की यूनिवर्सिटी । बस फेर क्या छौ, अब त लणगुणू तै सैरू हिमालय, अर भारत मिल गी, बस मौका चयेणु च।
जबारि बटी ईं नौकरी का बाना घौर छोड़ी तै देस भग्यां, त गढ़वळी बोलण वळौं कू दगड़ू बि छ्व्ट गी । ये ब्लॉग का माध्यम से मी अपणा गढ़वाली भै बंदूं दगड़ी, युं जगों का बारा म, इख घुम्दु घुम्दु जदगा बि मैंतै पता चली, अर जू बि मिन महसूस करी वेतै गढ़वाली मा बथाणै की कोशिश करणु छौं। ताकि जू भै बंद गढ़वाळ बटी दूर व्हे गैनी, वू दूर देशम भी ये तै पढ़दू-पढ़दू अफु तै गढ़वाळ मा ही महसूस करन, अर अगर वु यूँ यात्राओं मा जाण चाणा छन त, वूं तै जानकारी भी पैली बटी रावु । ईं उम्मीद म बि छौं कि अपणा विचार भी मैतै जरुर बताला अर हम अपणी बोली मा छुँवि बत्त लगै सकला।
जय बाबा केदार ।
पंदेरू,
ग्राम- कोठार, पौड़ी गढ़वाल