फागुणा मैना बटी गढ़वाळ मा ठण्ड कम होण ळगदी, डाळ्युं मा मोल्यार आण बैठ जांदी अर बोण, बुरांसा फुळ्ळूं का औण से ळाळ-हरयां व्हे जांदन। पिरथी का यी रंग, इखा मनख्युँ का जीवन मा बी रंग भोरण ळग जंदन। अर बैसाखा मैना आंदू-आंदू इखा मनखी रमेण ळग्दन मेळा-खोळ्ळों मा। येई बैसाखा मैनै, संगरांदो तै गढवाळा जौनसार-बावरा इळाका मा मणाये जांदू एक त्योआर बिस्सू। बिस्सू की तय्यरी यी ळोग भौत पैळी बटी कन्न बैठ जांदन। अपणा घोरुं तै रंगांदन, मैमानूं तै बुळांदन, बण-बण्यू खाणू-पेणू होंदू, अर फिर खेलेंदू ठोडा।
इन्नी एक बैसाखै संगरांदो तै, चकराता नजीक ळ्वारी गौं का ळोग बिस्सू की पूरी तय्यरी मा छन। चकराता-त्यूणी व्ळी सड़की मा, चकराता बटी दस एक मीळ चळी, कनासर से पैळी ही कटे जांदू, ळ्वारी कू बाठू। पर आज सर्ग सुबेरी बटी घिरायूं च, अर आठ बज्दा बज्दा बरखण भी ळग गी। सबेरै बरखा न, वीं काची सड़क्या हाल इन व्हे गैनी, कि ब्रेक मरद्यु मोटरसैकिला टैर, एक तरफां कु तै रण्ण बैठ जाणान। अर अब वु फेर बरखण ळग्गी। पर व्हे तब!!! बिस्सू द्येखण।
सर्ग थमे, त धारम बटी पैदळौ बाठू पकड़ी, गौं का मंदिरा चौक मा पौंच गयुं। पर बरखा कु झमणाट फिर शुरू व्हेगी। एक मौ की द्येळी बटी भीतर बैठणु तै पूछी, त वून देप्तै तरों पूजी। भितरम बैठै, खाणु खळै, अर फिर दूसरा भितरम बैठै की कंब्ला देनी, ताकि मैमान तै ठण्डु नी लगु। मी जद्गा, वूंका बारा मा पुछणु रयूं, वु वे से जादा ही बताणा रैनी। वे कंब्ला मा बैठी, भैर बरखा का झमणाट देख्दु, मी यूँ लोगों का जीवन तै अपणा जीवन दगडी मिलाणै कोशिश कन्नू रयूं। अर याद आणी रै, ज्वानी का दिनों की वा बात, जब मैतै जौनसार छोड़ी कखी बी घुमणै आज्जदी छै। वुखो नौ ल्या त बस एक ही बत्त सुणायेंदी छै, "जू गै बल रवैं, वु बणी घर जवैं"। बात ठीक ही छै, इद्गा मयाल्दू मनख्युँ छ्वोड़ी कु जाण चाळू। इनै बरखा बंद व्हे, वुना प्रधान जी का घौर बटी मेरु रैबार बी ऐगी। मेरा कुछ दगड़्या, जू एक डाक्यूमेंट्री फिळम बणाणु तै आणा छा, वु प्रधान जी का इख पौंच गै छा ।
ठोडा मतलब साठी-पासियुं का बीच धनुष-बाणै ळड़ै। साठी मतलब कौरौं का, अर पासी मतलब पाँडों का वंशज। बोल्दन की माभारता खतम होणा बाद, द्वी तरफां का बच्यां कुछ मनखी हिमाचला सिरमौर, अर गढवाळा जौनसार भावरा इलाका मा ऐगै छा। अर यूंमा बीच-बीचम ळड़ै बी ळगीं रांदी छै। पर आज इ ळड़ै कुळ एक पारम्परिक खेळै तरौं बिस्सू का दिन खेळे जांदी। अर ळड़ै बी खेळे जांदी एक्की परिवारा ळोख्खूं का बीच। ठोडा खेळणा कु तै मनख्युँ जतरा लंबा रिंगाला बण्या धनुष, अर द्वी- एक हाथ लम्बा बाण रांदन। टंगडियूं तै तीरुं की चोट्टूं न बचाणु तै, जुराबुं का मत्थी पट्टी लपेटे जांदी, अर वेका भैर पैरै जांदू ऊनौ बणियूं एक बिसेस पैजामू।
इखम बटी मेरा दगड़्या भुटाणु की तरफ जाण बैठ गैनी, वुख बिस्सु अभी भोळ खिळेण। पर मेरी ज्युकड़ी मा आज ही इद्गा छपछपी पोड गै छै, कि मी अपणी मोटरसैकिल उठै की घौरा बाठा लग ग्यौं। अर पूरा बाठा, मन मा य्वी स्वोच्णु रयूं, कि क्या हमारी आण व्ळी पीड़ी बी मेळ्ळा-खोळ्ळौं का ये रूप द्येख सकळी?
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