गढवाळा एक छव्ठा सी क़स्बा मा रौण व्ळा ज्वान नौनै तरौं मेरू बि ज्यू छौ कि नौकरी कन्नू जाण त भस बड़ा सैर मा। नजीक मा दिल्ली छौ, त भस पड़ै निपटै की पौंछ ग्यां दिल्ली नौकरी कन्नू तै। सुरु-सुरु मा दिल्ली की जिंदगी भौत बड़िया लगी। उन त काम-धाम मा टैमो पता नी चलदू छौ, पर जै दिन बि टैम मिलू, कनाट प्लेस, पालिका बजार, लाल किला, क़ुतुबमीनार, इंडियागेट,कख्खी बि चल जा, बस फेर त टैमो पतै नी चलु। द्वी बरस कन रौड़ गैनी पतै नी चली। पर फेर भीड़ से दूर अफु तै टैम निकल्नु तै मि, सुबेरे चा लेकि छत्त मा जाण लग ग्यों। चा पेंदु-पेंदु आँखी इनै-उनै डबराणी रांदी छै, अर दूर-दूर तक कूड़ी ही कूड़ी दिखेंणी रांदी छै। पर यु समझ मा बि नी आन्दू छौ कि आँखि खोजणी क्या छन।
फेर अचणचक एक दिन छत्त मा चा, पेंदु-पेंदु मैतै अपड़ा पौड़ी का दिन याद ऐनी, जब सेकी उठी, हाथ म चा कू गिलास पकड़ी, बरंडा बटी समणा हिंवाला तै देखणू रांदू छौ। चा कबारि ख़तम व्हे जांदी छै पता नी चल्दु छौ, अर मी होस मा, माँ की धै सूणी आंदू छौ कि, हे कॉलेज नी जाण रे आज | बर्सूं का बाद आज मैतै यु समझ मा आई कि मि सुबेर बरंडा मा किलै खड़ू रान्दु छौ। दरसल वीं सुबेरे चा पेंदू-पेंदू मेरु मन हिंवाला मा इन रम्यू रान्दु छौ कि मैतै कुछ होस इ नी रान्दु छौ। अर अब द्वी साल बाद वे पाड़ै धै ही ये मन तै दिल्ली की छतमा सुबेर-सुबेर ली जांदी छै | य्वी वु पैलु दिन छौ जै दिन पाड़ै ईं धै तै मी सूण सक्युँ, अर तबारी बटी आज तक कदगै दां या धै सुणे जांदी। अर अब त इन लगदू कि मी बि जन ईं धै तै ही ज्वगवल्लूं रन्दूं, अर धै सुणेंदी लग जन्दूं डांडी कान्ठियूं का बाठा ।
ये पड़दरा बि अगर याद कन्नै कोसिस कल्ला, त सैद वूं तै भी याद आवु कि वून भी कदगै दां या धै सूणी तै अणसुणी कर दे। पर अगर तुमुन अबि तक बि नी सूणी, त जल्दी या तुम तैं सुणेण व्ळी च। इबारी तुमुन ईं तै अणसुणु बि नी कर सकण, अर खोजण बैठ जाण इन जगा जख जैकी ये पापी प्राण तै बुथै सकां । चंद्रशिला एक इन्ही जगों मदी च, जख जैकी सांत मन से हिमालय दगडी छ्वीं-बत्त व्हे जन्दन, अर खुट्टियुं तै भौत जादा कष्ट बि नी होन्दु। चंद्रशिला जाणौ सै टैम च अप्रैल बटी नवंबर तक | पर जादा ठीक रालू कि मै बटी अक्टूबर तक जये जावू, जबरी तुंगनाथा पट खुल्याँ रंदन | वै से फैदा यु च कि पंच केदार में से एक तिसरा केदारै जात्रा व्हे जाँदी, अर तुम बासा तुंगनाथ रै सक्दां । तुंगनाथ रात रुकणौ सबसे बड़ू फैदा च कि, ब्याखुनि दां बि तुम चंद्रशिला जै सकदां अर सुबेर बिन्सरी से पैली चोटी मा पौंची, घाम आण दा हिंवाली काठियूं तै अलग-अलग रंग बदल्दू देख सक्दां ।
मी तुंगनाथ अप्रैल, जून, अक्टूबर अर जनवरि या मैना चल गयूं, अर द्वी दां चंद्रशिला, अप्रैल अर अक्टूबरा मैना । पर चंद्शिला बटी हिमालय कु जु आनंद अक्टूबर मा मिली, वे लेणु तै मि बार-बार वुख जाण चांदू ।चोपता, ऋषिकेश बटी लगभग द्वी सौ मील च। ऋषिकेश बटी चोपतौ तै सीदी बस त नी च, पर उखीमठ तकै जेमो अर रोडवेजै सीदी बस मिल जांदी। उखीमठ बटी चोपतौ तै लोकल टैक्सी मिल जन्दन, त आराम से ऋषिकेश बटी सुबेर चली स्याम तक चोपता पौंछे जांदू। चोपता बटी तुंगनाथ सड़े तीन किमी च अर तीन घण्टा मा त आराम-आराम से चल-चली भी पौंछे जांदू।
चोपता बटी सड़की तै छोड़दु ई, बौणा बीच तुंगनाथौ तै पक्की छफुटि लगीं च। यु पंच केदार मा एक च, इलै पट खुल्याँ रंदन त पूरा बाठा मा चैल-पैल भी ठीक-ठाकी रांदी। १ किमी बाद एक सुन्दर बुग्याल आन्दू, अर वू बि इनु कि ऐथर जाणौ ज्यू नी बोल्दू, बस बैठ्यां रा इक्खी | पर इखम बटी खड़ी उकाल बि सुरु व्हे जांदी, त जदगा जल्दी बाठा लगल्या, उदगा एथरो सुख रालू। फेर एक किलोमीटरै खड़ी उकाला बाद धार मा एक चा की दुकानि च। जखम बटी एक तरफां तौऴ पूरी घाटी दिखेंदी, त दूसरी तरफां, मत्थी बुग्याल। इख्मी बटी बौण अर बुग्यालो मेल होंदू। ये बाठा मा मिन एक बात हौर देखि कि मी जै भी मैना इख अयुं, ये रस्त मा मैतै घाम, बरखा अर कुयेडू, तीन्नी जरूर मिन्नी।
तुंगनाथा रस्तो पैलु बुग्याल - जख बैठियूं राणौ ज्यू
बोल्दु
तुंगनाथा रस्तो पैलु बुग्याल - जख बैठियूं राणौ ज्यू
बोल्दु
तुंगनाथ से एक किलोमीटर पैल्यु बाठू
तुंगनाथ
तुंगनाथ अफु मा ही इन जगा च कि, इख पौंची की तै मन सांत व्हे जांदू। पर खुट्टियुं तै अबि थ्व्ड़ा सी हौर हिलाणै ज्वरत च। फेर एक किमी बाद पौंच जंदां चंद्रशिला। ऊँचै, चार हज़्ज़ार मीटर, एक छ्व्टु सी ढुंग्यूँ कु बण्यूं मंदिर, अर दुनया भरा छ्व्टा-छ्व्टा ढुङ्गो का चट्टा, जु इख आण व्ऴौं न अपणा पितरों का या फेर देपता बटी, अपणी ईच्छौं तै पूरू कन्नू तै लगायां छन। चंद्रशिला बटी कदगै हिंवांली काँठी दिखेंदन, जैमा मेन छन नंदा देवी, नंदा देवी ईस्ट, नंदा खत, द्रोणागिरी, नीलकंठ, चौखम्बा अर केदार नाथ। घाम अछलेणा टैम मा ई काँठी अलग-अलग रंग बदल्दु दिखेंदन। पाड़ै एक बात हौर च कि इख घामअछ्लेंदु ही रुमुक पोड जाँदी, इलै मत्थी जाण दां कीस मा टौर्च जरूर डाल देण, निथर तौळ आण दां घिलमुंडी खयेणन। अर वुख घिलमुंडी खेलणौ मतलब च जै राम जी की, इलै टौर्च भौत जरुरी च।
चंद्रशिला
चंद्रशिला बटी नंदा देवी अर नंदा खत हिंवांली काँठी,
घाम अछलेंदी दां
चंद्रशिला, रुमुक पोण्ण से पैली
ठंडी जगों मा सुबेर खंतड़ू छोडणौ ज्यू नी बोल्दु, अर बिस्तर भी घाम आणा बाद ही छोडें दू, पर अगर ज्युन्दाजी सर्ग देखण हो त एक दिन ईं खंतड़ै माया तै छोड़ा, अर सुबेर सड़े चार बजी उठी तुंगनाथ बटी चंद्रशिला का बाठा लग जा। इन नी सोचनी की तुम ये अँधेरा मा यखुली ही बाठा लग्यां होला, तुमारा ऐथर पैथर, थ्व्ड़ी-थ्व्ड़ी दूर मा ही सै, पर उज्येला चल्दा दिखे जाला। ४५ मिंट या १ घण्टा मा तुम चंद्रशिला पौंच जैल्या, अर तबारि तक उज्येलु भी व्हे जालू। मत्थिम भरी कुरकुरी चलदी इलै कपडा अंक्वै पैरियाँ होण चेयणा छन, अर बांदर टोपलू त भौत ई जरुरी च। जन-जन उज्येलु बड़दू रान्दू, तन-तन तख मनखी भी बड़ ना रन्दन, दगड़ा मा चन्द्रशिला बादाऴों का बीच घिरे जांदू, अर उन्नी लगदू जन नाटकूं अर पिक्चरूँ मा सर्ग दिख्येन्दू। या फेर जन हमुन मन मा सर्ग सोचयूं च । घाम अभी चंद्रशिला मा त नी ऎ, पर चौखम्बा अर केदारनाथै ऊंची कांठीयूँ, तै कुछ किरण सुनैली बणै दें दन, अर फेर धीरे-धीरे घाम दगड़ी इ अलग-अलग रंगूं मा बदली एक दम चंदी सी लगण बैठ जन्दन। केवल यूँ कांठियूं का रंग ही ना, ईख बटी घाम आन्दू देखणौ भी एक अलग ही आनदं च, जब घाम आन्दू त वेकी किरण ईं दुनिया म एक उजेलु लेकी आंदी दिखें दिन। येतै देखी ईं बातो बि पूरु ऐसास व्हे जान्दू कि हमारा पुरखों न, वेदूं अर पुराणु मा किलै येतै दिन देपता बोल्यूं च, अर किलै हम तै दिन देपता तै पूजण चयेणु च। हमारा लम्बा जीवन का ये एक छ्व्टा सी टैम मा या प्रकृति हम तै एक पूरू आध्यात्मिक पाठ पढ़ै देंदी।पर फेर आस-पासा लोगुँ कु क़िब्लाट हम तै वापस ईं धरती मा चुलै देंदू, अर होसम आन्दू ही हम तै यु पुरू इलाकू उज्येला से भोरयूँ देख़ेंदू। दूर समणा व्ला पहाड़ म चन्द्रशिला की या चोटी घाम आण से रोकणी च, पर दिन देपता ऐथर कैकु बस चली, मथी ऐकी वु सब्बी जगा घाम फैलै कि सब्युं तै नयु प्राण देणु च। चंद्रशिला की ईं सुबेर म, प्रकृति का इ दर्शन अर प्रकृति कु पढायुं पाठ हमारा जीवन तै एक नै दिशा देन्दू, अर मैतै त इन लगदू की यु पहाड़ हमारा जीवन तै, नै दिशा देणु तै ही हम तै धै लगान्दू।
हिंवांली काँठी, सुबेर घाम आण से पैली
चौखम्बा दर्शन, सुबेर घाम आण से पैली
केदारनाथ दर्शन, सुबेर घाम आण से पैली
चंद्रशिला, ईं धरती म सर्ग
चन्द्रशिला बटी, घाम आण से पैली
चन्द्रशिला बटी, दिन देपता पैला दर्शन
चन्द्रशिला बटी, दिन देपता पैला दर्शन
चौखम्बा, घाम आणा बाद
चंद्रशिला कु छैल
उज्येला का असली दर्शन बि इक्खी बटी होंदन
घाम आणा बाद चंद्रशिला
चोपता बटी सुबेरा चल्यां भी पौंच गैनी, बस थ्वड़ा सी
देर व्हे गी वुं तै
तुंगनाथ
तुंगनाथ बटी तौळै घाटी का दर्शन
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