गढ़वाळ म कखि बि जैल्या त दूर- दूरै धारम तुमतै मंदिर जरूर दिखेणा राला। इन्हि, छव्टा म जब बि हम कोटद्वार बटि घौर जांदा छा त गुमखाळा बाद दूर धार म एक मंदिर दिखेंदु छौ। ज्वान हुयां त पता चली कि वा भैरों गढ़ी च। ज्यु त कदगै दां बोल्दु छौ उख जाणौ पर कबि छन्द नि लगी। बाद म बाबा इन कृपा व्हे कि मेरि सौरास हि चिपलडुंगी व्हे गी अर दरसन बि कदगै दां व्हे गैनी, पर ईं जगा म ख्यच्णै इन सक्ति च कि, बार बार इख आणौ ज्यु बोन्नू रांदू।
कोट्द्वरा बटि पौड़ी जाण व्ळी सड़कि म आन्दि एक जगा गुमखाळ। जख बटि एक अलग सड़क निक्ल्दी, ज्वा चेळुसैण, सिलोगि, मोहन चट्टी व्हे कि रिसकेस जान्दि। ईं सड़कि म ४-५ मील जाणा बाद आंदू कीर्तिखाळ, जख बटै पैदाळा बाठा डेड़ एक मील चली पौंच जदाँ भैरों गढ़ी। भैरों गढ़ी बटि, थ्व्ड़ा सि निस्सि एक दुस्रि धार म, एक हौर मंदिर दिखेंदु ज्वा च लंगूर गढ़ी।
गढ़वाळ तै बावन गढुं कु देस बि बोले जांदु। हमारा इतिहास कारूं कु ल्यख्णु च कि दसीं सताब्दि म नारसिंग देव न, जु कि गोरखनाथ समप्रदाय से छा, पुरा गढ़वाळै सत्ता अपणा हाथ म लेकि गढ़वाळा अलग-अलग कुणा म बावन गढ बणैकि, युं सब तै समल्णु तै बावन नारसिंग अर छियासी भैरव बैठैनी। ईं गढी म हणमन्त नौ का बीर भैरौं तै बैठै, जैका बाद पैली ईं गढी तै हणमत गढी फेर हनुमान गढी अर बाद म सोळीं सताब्दि बटि लंगूर गढी बोले गी।
य गढी जादा उच्चा म नी छै त बादा बर्सूं म लड़ै कि डौर लगीं रांदि छै। सन १७९० म जब गोर्ख्यों न, गढवाळ म जब पैलि बार लड़ै करि छै, तब लंगूर गढी का नजीक दुस्री धार म भैरौं कि सक्ति कु गढ (भैरौं गढी ) बणा येगी। ये गढ मा चढणु ईतगा सौंगु नि छौ, अर गोर्ख्या २८ दिन तलक लडै करणा रैनी पर जीत नी सकनी। येका बाद सन१८०४ म गोर्ख्यों न दुसरि तरफां बटि लड़ै करि भैरौं गढी तै जीती। ईं लड़ै मा सन १८ ०४ म गढवाळा राजा प्रद्युमन मरे गै छा, अर गढवाळ म गोर्ख्यों कु राज व्हे गै छौ।
भैरौं गढी ये मुल्का लोगुं कु एक तीरथ च। जख वु हर दुख मा वेकु हि आसरा पांदन त हर सुख तै बि वेकु हि आसिर्वाद समझी इखै जात्रा कर दन। इख मै का मैना एक मेळु बि लगदु। इन जरुरि नि च कि इख आणु तै एक जात्री हि बणी आवा, युं द्वी जगों बटि सिवालिकै पाड़ियुँ से लेकि, बीचा पाड़, घाटि अर कदगै हिंवालि काँठियुं का दरसन होंदन। नजीक म हि कालौडांडा (लैन्सिडौन) च, जख अजक्याल हर क्वी घुमणु तै आणु च, इलै जब बि लैन्सिडौन घुमणु तै ऐल्या त युं द्वी गढियुं मा बि जरुर जयां।
गढ़वाळ तै बावन गढुं कु देस बि बोले जांदु। हमारा इतिहास कारूं कु ल्यख्णु च कि दसीं सताब्दि म नारसिंग देव न, जु कि गोरखनाथ समप्रदाय से छा, पुरा गढ़वाळै सत्ता अपणा हाथ म लेकि गढ़वाळा अलग-अलग कुणा म बावन गढ बणैकि, युं सब तै समल्णु तै बावन नारसिंग अर छियासी भैरव बैठैनी। ईं गढी म हणमन्त नौ का बीर भैरौं तै बैठै, जैका बाद पैली ईं गढी तै हणमत गढी फेर हनुमान गढी अर बाद म सोळीं सताब्दि बटि लंगूर गढी बोले गी।
य गढी जादा उच्चा म नी छै त बादा बर्सूं म लड़ै कि डौर लगीं रांदि छै। सन १७९० म जब गोर्ख्यों न, गढवाळ म जब पैलि बार लड़ै करि छै, तब लंगूर गढी का नजीक दुस्री धार म भैरौं कि सक्ति कु गढ (भैरौं गढी ) बणा येगी। ये गढ मा चढणु ईतगा सौंगु नि छौ, अर गोर्ख्या २८ दिन तलक लडै करणा रैनी पर जीत नी सकनी। येका बाद सन१८०४ म गोर्ख्यों न दुसरि तरफां बटि लड़ै करि भैरौं गढी तै जीती। ईं लड़ै मा सन १८ ०४ म गढवाळा राजा प्रद्युमन मरे गै छा, अर गढवाळ म गोर्ख्यों कु राज व्हे गै छौ।
भैरौं गढी ये मुल्का लोगुं कु एक तीरथ च। जख वु हर दुख मा वेकु हि आसरा पांदन त हर सुख तै बि वेकु हि आसिर्वाद समझी इखै जात्रा कर दन। इख मै का मैना एक मेळु बि लगदु। इन जरुरि नि च कि इख आणु तै एक जात्री हि बणी आवा, युं द्वी जगों बटि सिवालिकै पाड़ियुँ से लेकि, बीचा पाड़, घाटि अर कदगै हिंवालि काँठियुं का दरसन होंदन। नजीक म हि कालौडांडा (लैन्सिडौन) च, जख अजक्याल हर क्वी घुमणु तै आणु च, इलै जब बि लैन्सिडौन घुमणु तै ऐल्या त युं द्वी गढियुं मा बि जरुर जयां।
भैरों गढ़ी रस्ता बटि - फोटो - फरबरी २०१०
भैरों गढ़ी मंदिर - फोटो - अक्टूबर २००८
भैरों गढ़ी मंदिर बटि - फोटो - अक्टूबर २०१७
लंगूर गढ़ी, भैरों गढ़ी मंदिर बटि - फोटो - अक्टूबर २००८
लंगूर गढ़ी रस्ता बटि - फोटो - फरबरी २०१०
लंगूर गढ़ी बटि - फोटो - अक्टूबर २००८
लंगूर गढ़ी बटि, भैरों गढ़ी मंदिर- फोटो - अक्टूबर २००८
बस्ग्याळा दिनूं मा यु इलाकू - फोटो - अगस्त २०१९
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