इखै याद अचणचक इळै ऐ, किळै कि ब्याळी- परसी मिन एक खबर पौढी कि "बिजळी माद्द्यो का बोण मा बिजळी प्वोड़ी"!! पर अब त हिमाचळा ळोग बोन्न ळग गै छा कि मोबैळ टावर ळग्णा बाद इख बिजळी नी पोण्णी।
सात-एक साळ पैळी मिन अप्ड़ा एक हिमाचळी दग्ड़्या का गिच्चा बटी सूणी छौ इखौ नौ। वेकी ब्वारी का, मैतै तरफां का देप्ता छन वु। वेन बतै की कुळ्ळू का नजीका ये माद्द्यो मा, हर बारा साळ मा एक बार बिजळी पोड़दी। बिजळी त भैर एक ळख्ड़ा का खंबा मा पोड़्दी। पर मंदिरा भीतर शिबळिंग टुट जांदू, जैतै बाद मा पुजारी मक्खन न ज्वोड़्दू। यांका बाना हि येकु तै बिजळी माद्द्यो ब्वोळदन। अर काहनी ज्वा इखा ळोग बथांदन, कि पुराणा टैम मा एक कुळांत नौ कु रागस छौ, जैकु सरीळ अजगरौ छौ। वेन अप्ड़ा सरीळ तै बड़ु बणै, अर इनै की नद्यियुं कु पाणी रोक दे। अर ये सैरा इळाका तै डुबाण ळग्गी। तब सिबजी न वेतै अप्ड़ा त्रिसूळ न मारी, अर इन्द्रौ तै ब्वोळी कि हर बारा साळ मा इख बिजळी डाळी, जै तै मी अप्ड़ा मत्थि ळ्हेकी इनै का सब मन्खियुं का दुख अफु मा ळ्हे ळेळू। ब्वोळदन कि वेकु सरीळ ही यी पाड़ छन, अर वेका नौ से ही ईं पूरी घाटियु नौ कुळ्ळु घाटी पोड़ी। वुन हर धार्मिक जगा का बारा हम्तै क्वी ना क्वी काहनी जरुर सुणायेंदी, अर यान फरक बी नी पोड़्दु कि हम युँ काहनियुं तै सच मण्दां या ना। पर हर कै इनी जगा मा, ज्वा बर्सूं बटी पुजेणी च, इनी सक्ति जरूर होंदी, कि मन्खी जैं आस्था अर बिस्बास मा वुखै जात्रा करदू, वा वेतै अप्ड़ा होणौ ऐसास करै देंदी।
इख पौंच्णु इद्गा कठिन बी नी च, किळै कि कुळ्ळु बटी हर एक घंटा मा इखौ तै बस मिळ जांदी। ज्वा एक घंटा बाद चांसरी गौं मा उतार देंदी। अर चांसरी गौं बटी ३ किळोमीटर चळी तै इख पौंचे जै सकेंदु। इळै अगर कुळ्ळु-मनाळी घुम्णु तै गयां छाँ, त बिजळी माद्द्यो का दरसन बी कर सक्दां। मंदिर ढै हजार मीटरै ऊँचै मा एक सुंदर बुग्याळ मा च। जखम बटी ब्यास अर पार्बती नद्यियुं कु संगम बी द्यिखेंदु अर दगड़ा मा पूरी कुळ्ळु घाटी का दरसन बी व्हे जांदन।
दिळ्ळी, हरद्वार, देरादूण अर चंडीगड़ राण व्ळा, मेरी तरौं इखै जात्रा बिना छुट्टी ळ्हियाँ बी कर सकदन। मिन २०१९ मा सौणा मैना, एक ऐत्वारौ तै इखै जात्रा करी छै। छंचरौ तै आफिस बटी छुट्टी होणा का बाद चळी रात १० बजी चंडीगड़ पौंच्युं, अर वुख बटी सबेर सात बजी कुळ्ळू। कुळ्ळु बड़ु बजार च, इळै नहेणी-धुयेणी इख्मी व्हे जौ त ठीक च। एक त सौणौ मैनु छौ, अर ऐंच बटी ऐत्वार। खड़ा-खड़ी जाण पोड़ी कुळ्ळु बटी चांसरी तकै बस मा। अर जात्री खूब छा, त पैदळा बाठा मा बी पुछण नी पोड़ी। ११ बजी से पैळी मंदिर पौंच गै छौ, अर दरसन कन्ना बाद तीन-एक घंटा बैठ्युं रयुं। वेका बाद वापसी। पाँच बजी तक तौळ कुळ्ळु पौंची तै बस पकड़ी, अर सुबेर सात बजी तक रूड़की। वेका बाद आफिस।
बिजळी माद्द्यो की जात्रा कन्ना बाद, म्यरी तरौं तुम्तै बी ळग जाळू कि इनै आण व्ळौं तै इखा दरसन जरूर कन्न चयेणा छन। हिमाळय का बुग्याळम एक सुंदर देबस्थान, जु कि सड़्क्या इद्गा नजीक च कि क्वी बी जै सक्दू। यु बी जरुरी नी कि भगति मा ही इख जये जावु। अगर सैरी कुळ्ळू घाटी तै चखुळ्यौं की तरौं मत्थि बटी द्येखण हो, त इख से बढिया जगा हौर क्वी नी च। अर मैतै यी द्वी दरसन त व्हे ही छन, पर ईं जात्रै द्वी बात कबी नी भुळेंदिन। एक त, ये सैरा रस्ता मा पक्यां किंङोड़ द्येखी, अड़तीस-चाळीस साळ पुराणा दिन याद ऐनी, जबारि रुड़ियुं की छुट्टियुं मा सब घौर अयां रांदा छा। हमारु काम छौ चचाजी कु तै कळ्यो ळ्हिजाणौ, जु पुंगड़ा मा हौळ ळगांणा रांदा छा। अर घौर आंदी दां पिंडाळा पत्तौं मा किनगोड़ भोरी ळ्हाणौ। जैमा फुफू तेळ अर घर्या ळूण मिळै की सब्तै बंट दी छै। बस पुराणा दिनूं तै याद करदु-करदु, पता नी कद्गा किनगोड़ खै गयुं। अर दुस्रा, या म्यरी पैळी इन जात्रा छै जैमा, मी कुळ ऐत्वारै छुट्टि मा, घौर बटी सड़े चार सौ किळोमीटर दूर, एक माद्द्यो की जात्रा करी ऐगै छौ। इळै अब जबारि बी कखि जाण मा यु स्वोचि अळगस आंदू कि भौत दूर च कैन जाणै, त ईं जात्रा तै याद करदूं अर बाठा ळग जंदूँ।
सात-एक साळ पैळी मिन अप्ड़ा एक हिमाचळी दग्ड़्या का गिच्चा बटी सूणी छौ इखौ नौ। वेकी ब्वारी का, मैतै तरफां का देप्ता छन वु। वेन बतै की कुळ्ळू का नजीका ये माद्द्यो मा, हर बारा साळ मा एक बार बिजळी पोड़दी। बिजळी त भैर एक ळख्ड़ा का खंबा मा पोड़्दी। पर मंदिरा भीतर शिबळिंग टुट जांदू, जैतै बाद मा पुजारी मक्खन न ज्वोड़्दू। यांका बाना हि येकु तै बिजळी माद्द्यो ब्वोळदन। अर काहनी ज्वा इखा ळोग बथांदन, कि पुराणा टैम मा एक कुळांत नौ कु रागस छौ, जैकु सरीळ अजगरौ छौ। वेन अप्ड़ा सरीळ तै बड़ु बणै, अर इनै की नद्यियुं कु पाणी रोक दे। अर ये सैरा इळाका तै डुबाण ळग्गी। तब सिबजी न वेतै अप्ड़ा त्रिसूळ न मारी, अर इन्द्रौ तै ब्वोळी कि हर बारा साळ मा इख बिजळी डाळी, जै तै मी अप्ड़ा मत्थि ळ्हेकी इनै का सब मन्खियुं का दुख अफु मा ळ्हे ळेळू। ब्वोळदन कि वेकु सरीळ ही यी पाड़ छन, अर वेका नौ से ही ईं पूरी घाटियु नौ कुळ्ळु घाटी पोड़ी। वुन हर धार्मिक जगा का बारा हम्तै क्वी ना क्वी काहनी जरुर सुणायेंदी, अर यान फरक बी नी पोड़्दु कि हम युँ काहनियुं तै सच मण्दां या ना। पर हर कै इनी जगा मा, ज्वा बर्सूं बटी पुजेणी च, इनी सक्ति जरूर होंदी, कि मन्खी जैं आस्था अर बिस्बास मा वुखै जात्रा करदू, वा वेतै अप्ड़ा होणौ ऐसास करै देंदी।
इख पौंच्णु इद्गा कठिन बी नी च, किळै कि कुळ्ळु बटी हर एक घंटा मा इखौ तै बस मिळ जांदी। ज्वा एक घंटा बाद चांसरी गौं मा उतार देंदी। अर चांसरी गौं बटी ३ किळोमीटर चळी तै इख पौंचे जै सकेंदु। इळै अगर कुळ्ळु-मनाळी घुम्णु तै गयां छाँ, त बिजळी माद्द्यो का दरसन बी कर सक्दां। मंदिर ढै हजार मीटरै ऊँचै मा एक सुंदर बुग्याळ मा च। जखम बटी ब्यास अर पार्बती नद्यियुं कु संगम बी द्यिखेंदु अर दगड़ा मा पूरी कुळ्ळु घाटी का दरसन बी व्हे जांदन।
दिळ्ळी, हरद्वार, देरादूण अर चंडीगड़ राण व्ळा, मेरी तरौं इखै जात्रा बिना छुट्टी ळ्हियाँ बी कर सकदन। मिन २०१९ मा सौणा मैना, एक ऐत्वारौ तै इखै जात्रा करी छै। छंचरौ तै आफिस बटी छुट्टी होणा का बाद चळी रात १० बजी चंडीगड़ पौंच्युं, अर वुख बटी सबेर सात बजी कुळ्ळू। कुळ्ळु बड़ु बजार च, इळै नहेणी-धुयेणी इख्मी व्हे जौ त ठीक च। एक त सौणौ मैनु छौ, अर ऐंच बटी ऐत्वार। खड़ा-खड़ी जाण पोड़ी कुळ्ळु बटी चांसरी तकै बस मा। अर जात्री खूब छा, त पैदळा बाठा मा बी पुछण नी पोड़ी। ११ बजी से पैळी मंदिर पौंच गै छौ, अर दरसन कन्ना बाद तीन-एक घंटा बैठ्युं रयुं। वेका बाद वापसी। पाँच बजी तक तौळ कुळ्ळु पौंची तै बस पकड़ी, अर सुबेर सात बजी तक रूड़की। वेका बाद आफिस।
बिजळी माद्द्यो की जात्रा कन्ना बाद, म्यरी तरौं तुम्तै बी ळग जाळू कि इनै आण व्ळौं तै इखा दरसन जरूर कन्न चयेणा छन। हिमाळय का बुग्याळम एक सुंदर देबस्थान, जु कि सड़्क्या इद्गा नजीक च कि क्वी बी जै सक्दू। यु बी जरुरी नी कि भगति मा ही इख जये जावु। अगर सैरी कुळ्ळू घाटी तै चखुळ्यौं की तरौं मत्थि बटी द्येखण हो, त इख से बढिया जगा हौर क्वी नी च। अर मैतै यी द्वी दरसन त व्हे ही छन, पर ईं जात्रै द्वी बात कबी नी भुळेंदिन। एक त, ये सैरा रस्ता मा पक्यां किंङोड़ द्येखी, अड़तीस-चाळीस साळ पुराणा दिन याद ऐनी, जबारि रुड़ियुं की छुट्टियुं मा सब घौर अयां रांदा छा। हमारु काम छौ चचाजी कु तै कळ्यो ळ्हिजाणौ, जु पुंगड़ा मा हौळ ळगांणा रांदा छा। अर घौर आंदी दां पिंडाळा पत्तौं मा किनगोड़ भोरी ळ्हाणौ। जैमा फुफू तेळ अर घर्या ळूण मिळै की सब्तै बंट दी छै। बस पुराणा दिनूं तै याद करदु-करदु, पता नी कद्गा किनगोड़ खै गयुं। अर दुस्रा, या म्यरी पैळी इन जात्रा छै जैमा, मी कुळ ऐत्वारै छुट्टि मा, घौर बटी सड़े चार सौ किळोमीटर दूर, एक माद्द्यो की जात्रा करी ऐगै छौ। इळै अब जबारि बी कखि जाण मा यु स्वोचि अळगस आंदू कि भौत दूर च कैन जाणै, त ईं जात्रा तै याद करदूं अर बाठा ळग जंदूँ।
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